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श्री जन पूजा-पाठ संग्रह। २५५ फल वरैः परमात्म पद प्रदं, प्रवियजे श्री आदिनाथ जिनेश्वरं ॥१॥ ओह्रीं अष्ट चत्वारिंशत्कमलभ्यः पूर्णाघ ।
जयमाला
श्लोक। प्रमाणद्वय कर्तारं स्यादस्ति वाद वेदकं । द्रव्यतत्व नयागारमादिदेवं नमाम्यहं ॥१॥
छंद। आदि जिनेश्वर भोगागारं, मर्व जीववर दया सुधारं । परमानंदग्मासुग्वकंद. भव्यजीवहित करणममंदं ॥२॥ परम पवित्र वंशवर मंडरग. दुख दारिद्र काम बल खंडन । वेदकम दुज्जय बल दंडण, उज्जल ध्यान प्रति शुभ मंडण ३।। चतुअम्मील्लक्ष पूग्य जीवित पर, धनुप पंचशत मानम जिनवर। हेमवर्ण रूपोघ विमल कर, नगर अयोध्या स्थानक व्रत धर४।। नाभिराज परमात्म सुवेता, माना मरुदेवी गुणणेता । मोल म्बन पर भेद विख्याता, त्रिभुवननायक पुत्र विधाता ५।। गर्भकल्याणक सुरपति काधा। जन्मकल्याणक मेरुसिर मीधा। स्वयं स्वयंभू दीक्षा धारी । केवल बोध सु त्रिभुवन प्यारी ६॥ अष्ट गुणाकर सिद्ध दिवाकर, परम धर्म विस्तारण जय भर । शीतनाप रहित भव हाग, मर्व मोख्य निरुपम गुण धारी॥