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________________ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह | त्वन्नाममंत्रमनिशं मनुजाः स्मरंतः, सद्यः स्वयं विगतबंधभयाभवति ॥ ४६ ॥ २५४ ह्रीं महाबन्धन आपाद कल पर्यन्त वैरिकृतोपद्रव भय विनाशकाय श्री आदि परमेश्वराय ||१६|| मत्तद्विपेन्द्र मृगराजदवानलाहिसंग्रामवारिधि महोदरबंधनोत्थं । तस्याशु नाशमुपयाति भयं भियेव. यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते ॥४७॥ श्रीं ह्रीं सिंह गजेंद्र राक्षस भूत पिशाच शाकिनी रिपु परमोपद्रव भय विनाशकाय श्री जिनादि परमेश्वराय अ || ४७ || स्तोत्र त्रजं तव जिनेंद्र गुनिंबद्धां. भक्तया मयाविविधवर्णविचित्रपुष्पां । धत्ते जनो य इह कंठगतामजस्र', तं मानतंगमवशा समुपैति लक्ष्मीः ॥४८॥ श्रीं ह्रीं पठक पाठक श्रोता वा श्रद्धावान मानतुंगाचार्यादि समस्त जीव कल्याणदाय श्री आदि परमेश्वराय ||१८|| वन सुगंध सु तंदुल पुष्पकैः, प्रवर मोदक दीपक धूपकैः । २५
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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