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________________ २३४ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। बारा से तिहत्तर कोड़ि लाख ग्याग में चैयालीस, और सातसे चौंतीस महम बखानिये । सैंकड़ा है सात में सत्तर एते हुए सिद्ध तिनक, सु नित्य पूज पाप कम हानिये ।। १ ।। दोहा। बीस टोंकके दरश फल, प्रोषध संख्या जान । एकसौ तेहत्तर मुनी, गुण सठ लाग्व महान ॥ वत्ता छंद। ए वीस जिनश्वर नमत सुरेसुर मघवा पूजन कं आवें । नग्नागे ध्यावं मत्र सुग्व पाव गमचंद्र नित सिर नावे ।। इनि परिपुष्पांजलि । मम्मद शिखरजी का भजन मांवलिया पारमनाथ शिखर पर भले विगजें जी, हुकम हुआ सांवलियाजीका बांह पकड़ मंगवाया । शिखर पर भले विगजें जी, हुकम हुआ सांवलियाजीका बांह पकड़ मंगवाया ॥ टेर ।।। देश देशका जातरी पाया पूजा भाव रचाया, आठ दग्य ले पूजन कीनी मन बांछित फल पाया । शिखर पर भले विगंज जी, हुकम हुआ सांवलियाजाका बांह पकड़ मंगवाया ।। १ ।।
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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