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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। क्षुधा हरन नैवेद्य दीप ते ध्वान्त नसावे । धूप दहे वसु कर्म मोक्ष सुख फल दरसावै ॥ ए वसु द्रव्य मिलायकै अर्घ रामचन्द्र कीजिये। कर पूजा गिरशिखर की नरभवका फल कीजिये। ओं ह्रीं श्री सम्मेद शिखर सिद्धक्षेत्र परवन मती बीस तीर्थकगदि असंख्यात मुनि मुक्ति पधार. तिनके चरण कमलकी पूजा अनर्घ पद प्राप्तय अघ० ।।६।।
आगे प्रत्येक अर्घ
सोरठा। सकल कर्म हनि मोक्ष, परिवा सित बैसाख ही। जजों चरण गुण धोख, गये समेदाचल थकी॥ ओं ही श्री सम्मेद शिम्बर सिद्धक्षेत्र परवन सेनी ज्ञानधर कूटके दरशन फल एक कोड़ उपवास और श्रीकुंथुनाथ तीर्थकगदि छानव कोड़ा कोड़ी छानवे कोड़ बत्तीस लाख छानव हजार सात से बैयालिस मुनि मुक्ति पधारे. तिनके चरणकमलकी पूजा अघ०
दाहा। जेठ सुकल चउद्स दिवस मोक्ष गये गुणनाह । जजौं मोक्ष जिनके चरण कर करि वह उत्साह ॥ ओं ह्रीं श्री सम्मेद शिखर सिद्धक्षेत्र परवन सेती सुदत्तवर कूटके दरशन फल एक कोड़ उपवास श्री धरमनाथ तीर्थङ्कगदि गुण