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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। २२१ लिन मांहि मोह विध्वंस हो। आरती कर चाव सों। सम्मेद गिर पर बीम जिन मुनि पूज हरप उछाव सों ।।६।। ओं ह्रीं श्री सम्मेद शिग्वर मिद्धतंत्र परवत सेती बीम नीशंकगदि असंख्यात मुनि मुक्ति पधार, तिनके चरण कमलकी पूजा मोहांधकार विनाशनाय दीपं ।।६।। शुभ अगर अम्बर वाम सुन्दर धूप प्रभु ढिग खेवही । ए दुष्टकम् प्रचण्ड तिनको होय तत छिन छेवही ॥ यो धृप वमु विधि जरत कारग लीजिये सुध भावसों । सम्मेद गिर पर बीस जिनमुनि पूज हरप उन्नाव सों ॥७॥ ओं ही श्री सम्मेद शिग्वर सिद्धनत्र परवत सनी बीस तीथकरादि असंख्यात मुनि मुक्ति पधार. निनके चरण कमलकी पूजा अष्टकम विध्वंशनाय थपं० ।।७।। बादाम श्रीफल लोग पिस्ता लेय शुद्ध सम्हालही। मंकार दाख अनार केला तुग्न सुटे डाल ही ॥ भवि लेय उत्तम हेत मित्रके छूट विधिके दावमों । सम्मेद गिर पर बीम जिनमुनि पून हरप उछाव मों ॥८ श्री ह्रीं श्री सम्मेद शिग्बर मिद्धतंत्र परवत सनी बीम नीर्थकगदि असंख्यात मुनि मुक्ति पधार निनके चरण कमलकी पूजा मोक्षफल प्राप्तये फलं ||८||
प्पय चाल । जन्म मृत्यु जल हरें, गंध आताप निवार। तंदुल पदके अन्नय मदन • सुमन विदारै ॥