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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह।
पद अक्षयकारण लेय भविजन शुद्ध निरमल भावमों । सम्भेद गिरपर बीम जिन मुनि पूज हरष उछाव सों ॥३॥ ओं ह्रीं श्री सम्मंद शिग्बर मिद्ध क्षेत्र परवत संती वीस तीर्थकगदि असंख्यात मुनि मुक्ति पधार. निनक चरण कमल की पूजा अक्षय पद प्राप्तय अक्षनं० ।।२।। है मदन दुष्ट अत्यंत दुर्जय हते मबके प्रान ही। ताके निवारण हेत कुसुम मंगाय रंज न घान ही। जाकी सुवास निहार पटपद दोरि आवे चावमों । सम्मेदगिर पर बीस जिनमुनि पूज हरप उछाव मो ||४||
ओं ह्रीं श्री सम्मेद शिखर सिद्धक्षेत्र परवत सती बीम तीर्थक गदि असंख्यात मुनि मुक्ति पधारे. तिनके चरणकमल की पूजा काम बाण विध्वंसनाय पुप्पं० ।।2।। रस पूर रसना घ्रान रंजन चक्षु प्रिय अति मिष्ट ही । जिनराज चरण चढ़ाय उत्तम क्षुधा होवे नष्ट ही ।। भरि थाल कंचन विविध व्यंजन लीजिये सुध भावसों । सम्मेद गिरपर बीस जिन मुनि पूज हरप उठाव सों ।।५।। ओं ह्रीं श्री सम्मेद शिखर सिद्धक्षत्र परवत सेती बास नार्थकगदि असंख्यात मुनि मुक्ति पधार. निनकं चरण कमल की पूजा सुधा रोग विनाशनाय नैवेद्य० ॥५॥ त्रैलोक्यगर्भित ज्ञान जाको मोह निजयम करलियो । अज्ञान तममें पड़यो चेतन चतुरगति भरमन किया ।।