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श्री जैन
पूजा-पाठ संग्रह |
२१६ * ह्रीं श्री सम्मेद शिखर सिद्धक्षेत्र परवत सेती श्री बीस तीर्थकर और असंख्यात मुनि मुक्ति पधारे, तिनके चरणारविन्दकी पूजा अत्रावतरावतर संवौपट आह्वाननं । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधापनं । परि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
अथाक. गीता छंद ।
मोहन झारी रतन जड़िये मांहि गंगा जल भरो । जिनराज चरण चढ़ाय भविजन जन्म मृत्यु जरा हरो || संसार उदधि उबारनेको लीजिये सुध भावसों । सम्मेद गिरपर बीस जिन मुनि पूज हरप उछात्र सों ॥ १ ॥
ह्रीं श्री सम्मेद शिखर सिद्धक्षेत्र परवत सेती बीस तीर्थकरादि असंख्यात मुनिमुक्ति पधारे तिनके चरणकमलकी पूजा जन्ममृत्यु रोगविनाशनाय जलं ||१||
जाकी सुगंध की अहो अलि गंजते आवे घने । सो मलय संग घसाय केसर पूज पद जिनवर तने || भव आताप निवारने को लीजिये निवारने को लीजिये सुध भावसों । सम्मेद गिरपर बीम जिन मुनि पूज हरप उद्घाव मों |२|| ॐ ह्रीं श्री सम्मेद शिखर सिद्धक्षेत्र परवनमेमी बांस नीर्थकरादि असंख्यात मुनि मुक्ति पधारे, तिनके चरण कमलकी पूजा भव आताप विनाशनाय चंद्रनं० ||२||
अक्षत अखंडित अतिहि सुन्दर जोति शशि सम लीजिये । शुभ शाल उज्ज्वल तोय धोय सु पूज प्रभु पद कीजिये ||