SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१८ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। ___चाल सुन्दरी छन्द। सरस उन्नत क्षेत्र प्रधान है, अति सु उज्ज्वल तीर्थ महान है। करहिं भक्रिसु जे गुण गायकै, लहहिं सुर शिवके सुख जायकै ॥५॥ अडिल्ल छन्द । स्थापना. अडिल्ल छन्द । सुर नर हरि इन आदि और वंदन करें। भव सागरसे तिरै नहीं भवमें परै ॥ जन्म जन्मके पाप सकल छिनमें टरै। सुफल होय तिन जन्म शिखर दरशन करै ॥६॥ गिरि सम्मेद ते वीस जिनेश्वर शिव गये । और असंख्या मुनी तहां ते सिध भये ॥ बंदूं मन वच काय नमं शिर नायकै। तिष्ठो श्रीमहाराज सबै इत आयकै ॥१॥ श्रीसम्मेद शिखर सदा पूजें मन वच काय। हरत चतुरगति दुःखको मन वांछित फलदाय ॥२॥ दाहा।
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy