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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह कोड न सरन मरनदिन, दुख चहुंगति भरयो। सुखदुख एकहि भोगत, जिय विधिवसि परयो॥ परणे विधिवस आन चेतन. आन जड़ जु कलेवरो । तन असुचि परतें होय आस्रव, परिहरे ते संवरो॥ निरजरा तपबल होय समकित, विन सदा त्रिभुवन भम्यो । दुर्लभ विवेक विना न कबहू, परम धरमविष रम्यो ॥१२॥ ये प्रभु बारह पावन, भावन भाइया । लोकांतिक वर देव, नियोगी आइया ॥ कुसुमांजलि दे चरन, कमल सिर नाइया। स्वयंबुद्ध प्रभुथुतिकर, तिन समुझाइया॥ समुझाय प्रभुको गये निजपुर, पुनि महोच्छव हरि कियो । रुचि रुचिर चित्र विचित्र सिविका,-करसु नंदन वन लियो । तहँ पंचमुट्ठो लोंच कीनों. प्रथम सिद्धिनि नुति करी। मंडिय महाव्रत पंच दुद्धर सकल परिगह परिहरी ॥१३।। मणिमयभाजन केश परिट्रिय सुरपती। छीरसमुद-जल खिपकरि, गयो अमरावती ॥ तपसंयमबल प्रभुको, मनपरजय भयो। मौन सहित तप करत, काल कछु तहँ गयो।