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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह वदन उदर अवगाह, कलशगत जानिये। एक चार वसु जोजन, मान प्रमानिये ॥ सहस-अठोतर कलसा, प्रभुके सिर ढरे । पुनि सिंगार प्रमुख, आचार सबै करे ॥ करि प्रगट प्रभु महिमा महोच्छव, प्रानि पुनि मातहिं दयो। धनपतिहिं सेवा राखि सुरपति. श्राप सुरलोकहिं गयो । जन्माभिषेक महंत महिमा. सुनत सब सुख पावहीं। भणि 'रूपचन्द' सुदेव जिनवर जगत मङ्गल गावहीं ॥१०॥
३-तपकल्याणक श्रमजलरहित सरीर, सदा सब मलरहिउ । छीर वरन वर रुधिर, प्रथम आकृति लहिउ॥ प्रथम सार संहनन, सरूप विराजहीं । सहज सुगंध सुलच्छन, मंडित छाजहीं ॥ छाजहिं अतुल बल परम प्रिय हित. मधुर वचन सुहावन । दस सहज अतिशय सुभग मूरनि. बाललील कहावने । आबाल काल त्रिलोकपति मन. मचिर उचित जु नित नये । अमरोपनीत पुनीत अनुपम सफल भोग विभोगये ॥११॥ भव-तन-भोग-विरत्त, कदाचित चिंतए । धन-योवन पिय पुत्त, कलित्त अनित्तए ।