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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह तब परम हरषित हृदय हरिने सहम लोचन १ पूजिये ।। पुनि करि प्रणाम जु प्रथम इन्द्र, उछंग धरि प्रभु लीनऊ । ईशान इन्द्र सुचंद्र छवि सिर, छत्र प्रभुके दीनऊ |जा सनतकुमार महेन्द्र, चमर दुइ ढारहीं। शेष शक जयकार, शबद उच्चारहीं॥ उच्छवसहित चतुरविधि सुर हरषित भये । जोजन सहस निन्यानवे, गगन उलंघि गये ॥ लँघिगये सुरगिरि जहां पांडुक. वन विचित्र विराजहीं। पांडुकशिला तह अर्द्धचन्द्र समान. मणि छवि छाजहीं ।। जोजन पचास विशाल दुगुणायाम, वसु ऊची गनी । वर अष्ट-मंगल-कनक कलशनि सिंहपीठ सुहावनी ॥८॥ रचि मणिमंडप शोभित, मध्य सिंहासनो। थाप्यो पूरब मुख तहँ प्रभु कमलासनो॥ बाजहिं ताल मृदंग, वेणु वीणा घने । दुंदुभि प्रमुख मधुरधुनि, और जु बाजने ॥ बाजने बाजहिं सची सब मिलि. धवल मङ्गल गावहीं । पुनि करहिं नृत्य सुरांगना सब, देव कौतुक ध्यावहीं ।। भरि छीरसागर जल जु हाथहिं, हाथ सुरगिरि ल्यावहीं । सौधर्म अरु ईशान इन्द्र सु कलश ले प्रभु न्हावहीं ॥॥
१-पूजिये अर्थात् सहस नेत्र बनाकर पूजा को