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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह
कल्पवासि घर घंट अनाहद वज्जियो । जोतिषधर हरिनाद, सहज गल गज्जियो || गज्जियां सहजहिं संख भावन. भुवन सबद सुहावने । तिरनिलय पटु पटहिं बज्जिय. कहत महिमा क्यों बने ॥ कंपित सुरासन अवधिबल जिन-जनम निहचें जानियो । धनराज तब गजराज मायामयी निरमय आनियो || ५ || जोजन लाख गयंद, वदन सौ निरमये । बदन वदन वसुदंत, दंत-सर-संख्ये ॥ सरसर सौ-पनवीस, कमलिनी छाजहीं । कमलिनि कमलिनि कमल पचीस विराजहीं ॥ राजही कमलिनि कमलठातरसौ मनोहर दल बने । दलदलहि अपछर नटहिं नवरस हाव भाव सुहावने ॥ मणि कनककिंकरिण वर विचित्र मु अमरमण्डप सोहये । घन घंट चंवर धुजा पताका, देखि त्रिभुवन मोहये || ६ || तिहिं करि हरि चढ़ि आयउ सुरपरिवारियो । पुरहिं प्रदच्छन दे त्रय, जिन जयकारियो ॥ गुप्त जाय जिन- जननिहिं, सुखनिद्रा रची। मायामई सिसु राखि तौ, जिन आन्यो सची ॥ श्रान्यां सची जिनरूप निरखत नयन तृपति न हूजिये |