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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह |
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तदुभय तीजा अङ्ग लखीजें, अक्षर अर्थ सहित जु पढ़ी | चौथा कालाध्ययन विचार, काल समय लखि सुमरण धाएँ ८|| पंचम अङ्ग उपधान बतावें, पाठ सहित तब बहु फल पांच पटम विनय सुलब्धि सुनीजें, चारणी बहुत विनय सु पढ़ीजै ९ || जाएँ पढ़े न लोपं जाई, अङ्ग सप्तमगुरु बाद कहाई । गुरुकी बहुत विनय जुकरीज, सो अष्टम अङ्गधर सुख लीजे १० यह आटी अङ्ग ज्ञान बढ़ाने, ज्ञाता मन वच तन कर ध्यावै । अब आगे चारित्र सुनीजे, तेरह विधिधर शिव सुख लीजै ११ ॥ रक्षा कर, मोई अहिंसा व्रत चित धर हैं हितमित सत्य वचन मुग्य कहिये, सो मतवादी केवल लहिये १२ मन वच काय न चौरी करिये, मोई अचौर्य व्रत चित धरिये । मन मय भय मन रंचन ग्रन, मो मुनि ब्रह्मचर्य व्रत ठाने १३ || परिग्रह देख न मुक्ति होई. पंच महाव्रत धारक सोई । महाव्रत ये पांचों खरे हैं, सब तीर्थकर इनको करें हैं | १४ || मन में विकलप रंच न होई, मनोगुप्ति मुनि कहिये सोई । वचन अतीक रंच नहिं भाखं वचन गुप्ति मां मुनिवर ग १५|| कायोत्सर्ग परीप सहि हैं, ता मुनि काय गुप्त जिन कहि हैं । पंच समिति अब सुनिये भाई, अथ सहित भावों जिन राई १६ हाथ चार जब भूमि निहारें, तब मुनि या पथ पद धारें । मिष्ट वचन मुख बोलें मोई. भाषा समिति ताम मुनि होई ||१७||