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श्री जैन पूजा-पाठ मंग्रह।
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मवज्ञ-भाषित धर्म दश-विधि दयामय पूर्ज सदा । जजि भावना पोडशरतनत्रय जा विना शिव नहिं कदा ॥ त्रैलोक्यके कृत्रिम अकृत्रिम चंन्य चैत्यालय जर्ज । पंचमेरु नंदीश्वर जिनालय, खचर सुर-पूजित भज ।। कैलाश श्री सम्मेदगिर गिरनार मैं पूजं मदा । चंपापुरी पावापुरी पुनि और तीरथ मर्वदा ।। चौबीम श्री जिनगज पूजं बीम क्षेत्र विदेह के । नामावली इक महम बसु जय होय पति शिव गेहके ।।
दोहा। जल गंधाक्षत पुष्प चरु, दीप धूप फल लाय । सर्व पूज पद पूजहूं, बहु विध भक्रि बढ़ाय ॥ ओ ही अहन्ती मिद्धजी आचार्यजी उपाध्यायजी मर्वमाधुजी द्वादशांग जिनवाणी. दशलाक्षणिक धम मालहकारगण भावना मम्यग्दर्शन. सम्यग्ज्ञान. मम्यकचारित्ररत्नत्रय. तीनलाक संबंधि कृत्रिम अकृत्रिम चैत्यालय, नंदीश्वर द्वीप सम्बन्धि बावन जिन चंत्याल य. श्री मम्मेदशिग्बर कैलाशगिर गिरनार चंपापुर पावापुर आदि मिट्ट क्षेत्र अतिशय क्षेत्र. विद्यमान बीम तीर्थकर, भगवानके एक हजार आठ नाम श्री वृपभादि महावीर पर्यन्त चतुर्विशति तीथकरभ्यो जलाद्य महाघ निर्वपार्माति स्वाहा।