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१६४ श्री जन पूजा-पाठ संग्रह । स्वयंभू स्तोत्र भाषा।
चौपाई। राजविर्ष जुगलनि सुख कियो, गज त्याग भवि शिवपद लियो। स्वयंबोध स्वंभू भगवान, बंदी आदिनाथ गुणवान ।।१।। इन्द्र छीरमागर जल लाय, मेरु न्हवाये गाय बजाय । मदन विनाशक सुग्व करतार, बंदौं अजित अजितपदकार ।।२।। शुकल ध्यानकरि करमविनाशि, घाति अघातिमकल दुग्वगशि। लह्यो मुकतिपद सुख अधिकार, बंदी मंभव भवदुग्ख टार ।।३।। माता पच्छिम ग्यनमंझार, सुपने मोलह देखे मार । भूप पूछि फल सुनि हरपाय, बंदी अभिनंदन मनलाय ।।४।। सब कुवादवादी सरदार, जीते स्यादवादधुनि धार । जैनधरमपरकाशक स्वाम, सुमतिदेवपद करहुं प्रनाम । ५।। गर्भ अगाऊ धनपति आय, करी नगर शोभा अधिकाय । बरसे रतन पंचदश माम, नमों पदमप्रभु सुखकी गम ॥६।। इंद फनिंद नरिंद त्रिकाल, बानी सुनि सुनि होहिं खुस्याल । द्वादशसभा ज्ञानदातार, नमों सुपारसनाथ निहार ॥७॥ सुगुन छियालिम हैं तुम माहि, दोष अठारह कोऊ नाहिं । मोहमहातमनाशक दीप, नमों चंद्रप्रभ गख ममीप ॥८॥ द्वादश विध तप करम विनाश, तेरहभेद चरित परकाश । निज अनिच्छ भवि इच्छकदान, बंदों पहुपदंत मनान ।।९।।