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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। धर्म अर्थ लहि कामदेव नरपतिपद थावै । वृषभ आदि जिन जजे अर्घ कर जे नर ध्यावै ॥ वृषभादि चउवीस जिनेश्वर ध्याव ही। अर्घ करै गुणगाय तूर वजावही ॥ ते पावै शिव शर्म भनि सुरपति करै । रामचन्द्र सक नांहि कीनि जग विसतरै ॥ आं ह्रीं श्री ऋषभ. अजिन, सम्भव. अभिनन्दन, सुमति. पद्म. सुपार्श्व. चन्द्रप्रभ, पुष्पदन्न, शानल. श्रेयांम. वामपूज्य. विमल. अनन्त, धर्म. शान्ति, कुन्थु. अर. मल्लि. मुनि मुब्रत. नमि. नमि. पार्श्व. वर्द्धमान इति चतुर्विशनि जिनेन्द्रेभ्यः पूर्णाघ निवपार्माति स्वाहा।
(इत्याशीवादः) इति श्री चतुर्विशति जिन पूजा ( चौधरो गमचन्द्र कृना ) मं.पूणा ।
अथ महाघ ।
गीता छन्द। मैं देव श्री अहंत पूजं मिट्ठ पूजं चाव मों। आचार्य श्रीउबज्झाय पूजं माधु पूर्ज भाव मों। अहंत-भाषित बैन पूज द्वादशांग रची गनी । पूजं दिगम्बर गुरुचरन शिवहेत सब आशा धनी ।।