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श्री जैन पूजा-पाठ मंग्रह। प्रभु धीर महापन्नग अज्ञान। कर कीड हरयो मद को वितान ॥ ह्र प्रगट देवनय पूज पाय । परशंस कह्यो महावीर राय ॥४॥ लग्व पूख भव अनुप्रेक्ष्य चिंत्य । भयभीत भये भवनं अत्यंत ॥ लोकांति आय थुनि पूज्य पाय । निजथान गये सुर असुर आय ॥५॥ रच शिविका कर उत्सव अपार । बन जाय धरे प्रभु तज सिंगार ॥ नुति सिद्ध लौंच कच नगन काय । धर षष्ठम लव चिद्रप लाय ॥६॥ नप द्वादश द्वादश वर्ष ठान । चउघाति हने गह खडग ध्नान॥ जय अनंत चतुष्टय-लब्ध देव । वसु प्रातिहार्य अतिशय सुमेव ॥७॥