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________________ श्री जन पूजा-पाठ संग्रह | १५६ श्रीं ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय कार्तिक कृष्ण अमावस्यां मोक्ष कल्याणकाय अर्थ निर्वपामीति स्वाहा | अथ जयमाला । दाहा । सन्मति सन्मति दो मुझे हो सन्मतिदातार । इहै भतिपावन जगत होय अमल विस्तार ॥ १ ॥ ( पदडी चंद ) जय महावीर द्यनि अमल भान । सिद्धारथ चित अंबुज फुलान ॥ जय-त्रिसला कुव कुमुदनि अनृप । प्रफुलावन को मुख चंद्र रूप ॥ १ ॥ जय कुण्डलपुर जन्मा सुधान | हरिवंश व्योम मधि सुष्ट भान ॥ जय कनक वर्ण कर सप्त काय । हरि चिह्न हत्तर वर्ष आय ||२|| ॥२॥ जय इंद्र को महावीर सूर | ह्व सर्पक र ॥ सुन देव चलो फुंकार हाल विकराल क्रीडत कुमार भाजे विशेव ॥ ३ ॥ देख |
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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