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________________ v श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह | कर पुंजकारण अपदके उभ करमें लेय ही । श्री वीरनाथ जिनेन्द्र के युग चरण चरचं श्रेय ही ॥ ३ ॥ श्रीं ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय गर्भ जन्म, तप ज्ञान निर्वाण पंचकल्याणप्राप्ताय अक्षयपदातये अक्षतान निर्वपामीति स्वाहा । मंदार मेरु सुपारि तरुके सुमन गंधा - सक्त ही । मधुप भविनके चख लखे होय पवित्त ही ॥ सो समर वाण विध्वंस कारण कुसुम उत्कर लेय ही । श्री वीरनाथ जिनेन्द्र के युग चरण चरचं श्रेय ही || ४ || ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय गर्भ जन्म. तप, ज्ञान. निर्वारण पंचकल्याणप्राप्ताय कामवाणविनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा । . I पद्मा-निवास मरोज आश्रित क्षुधा की आमोदमों । चित्त सुधा भुंजन को तृपति हूँ वं मधुकरमोदसों ॥। सो ही पीग्रुप क्षुधा -विनाशन चारुचरु करलेय ही श्रीवीरनाथ जिनेन्द्र के युग चरण चरचं श्रेय ही ॥ ५॥ श्रीं ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याणप्राप्ताय तुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा । त्रैलोक्य मध्य जिनेन्द्र महिमा तेजतें दरसाय ही । पाप-तम दिग दशों निविड सुमृलतें नसजाय ही ॥
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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