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________________ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह | १५५ ह्रीं श्री वर्द्धमान जिनेन्द्र अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वानम. ह्रीं श्री वर्द्धमान जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ ठः ठः स्थापनम श्रीं ह्रीं श्री वर्द्धमान जिनेन्द्र अत्र मम सन्निहिता भव भव वपट मन्निधी करणम | अथ अष्टक (गीता ब्रँड ) कर्पूर-वाति शरद शशियम धवल हार तुपारतें । मुनि चित्त मी अति विमलमौरभ वं मधुकर प्यार ॥ मो हिमन उद्भव कुंभ मणिमय नीर भर तुटु छेयही । श्रीवीरनाथ जिनेन्द्र के युग चरण चरचं श्रेय ही || १ || ह्रीं श्री महावीजिनेन्द्राय गर्भ जन्म. तप ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याणप्राप्ताय जन्म मृत्युजरा रागविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा | मलयनीर कपूर शीतल वर्ण पूरण इंदु ही । आमोद बहुल समीर दिग वं मधुकरवृंद ही ।। सो द्रव्य भवतप नाश कारण कनक भाजन लेय ही । श्री वीरनाथ जिनेन्द्र के युग चरण चरचं श्रेय ही ||२|| ह्री श्रीमहावीर जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याणप्राप्राय संसागनापरागविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा । हिमन उद्भव मग्तिमीची शालिम शशिति धरै | दीघ अखंडित सरल पिंडन मुक्तम मन को हरे ||
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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