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श्री जैन
पूजा-पाठ संग्रह |
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ह्रीं श्री वर्द्धमान जिनेन्द्र अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वानम. ह्रीं श्री वर्द्धमान जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ ठः ठः स्थापनम श्रीं ह्रीं श्री वर्द्धमान जिनेन्द्र अत्र मम सन्निहिता भव भव वपट मन्निधी करणम |
अथ अष्टक (गीता ब्रँड )
कर्पूर-वाति शरद शशियम धवल हार तुपारतें । मुनि चित्त मी अति विमलमौरभ वं मधुकर प्यार ॥ मो हिमन उद्भव कुंभ मणिमय नीर भर तुटु छेयही । श्रीवीरनाथ जिनेन्द्र के युग चरण चरचं श्रेय ही || १ ||
ह्रीं श्री महावीजिनेन्द्राय गर्भ जन्म. तप ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याणप्राप्ताय जन्म मृत्युजरा रागविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा |
मलयनीर कपूर शीतल वर्ण पूरण इंदु ही । आमोद बहुल समीर दिग वं मधुकरवृंद ही ।। सो द्रव्य भवतप नाश कारण कनक भाजन लेय ही । श्री वीरनाथ जिनेन्द्र के युग चरण चरचं श्रेय ही ||२||
ह्री श्रीमहावीर जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याणप्राप्राय संसागनापरागविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।
हिमन उद्भव मग्तिमीची शालिम शशिति धरै | दीघ अखंडित सरल पिंडन मुक्तम मन को हरे ||