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________________ १५४ श्री जन पूजा-पाठ संग्रह | 1 मैं नमन हूँ मां तार अब ही ढील क्यों तुम काम । प्रभु पास दो मुझ दास की सुन अजं अविचल ठाम || १२ || नित पढे जे नर नारि ही सब हरे तिन की पीर सुर लोक लह नर होय चकी काम हलधर वीर ॥ पुन सर्व कर्म जु घात के लह मोक्ष सब सुख धाम | प्रभु पास दो मुझ दास की सुन अजं अविचल ठाम || १३ || श्री पार्श्व जिनेश्वर नमित संरेवर पूजे तिन भवपाम- हरम् । स्वर्गादिक जावं नृपपद पावे रामचंद पुन मुक्तिभरम् || ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय गर्भ जन्म. तप ज्ञान. निर्वाण पंचकल्याणप्राप्ताय अनपाये महाअ निर्वपामीति स्वाहा । इति श्री पाश्वनाथ जिन पूजा संपूणा ||२३|| २४ अथ श्रीवर्द्धमान जिन पूजा । रामचन्द्र कृत (अडिल्ल ) ही । परकाशक प्रभुजिन भान ही ॥ बोध शुद्ध लोक लोक महार और नहिं आन श्रीवर्द्धमान वीर के ग्रह्नाननविधि करु विमल गुण ध्याय ही || १ || प्रणमं पाय ही ।
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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