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श्री जन पूजा-पाठ संग्रह |
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मैं नमन हूँ मां तार अब ही ढील क्यों तुम काम । प्रभु पास दो मुझ दास की सुन अजं अविचल ठाम || १२ || नित पढे जे नर नारि ही सब हरे तिन की पीर सुर लोक लह नर होय चकी काम हलधर वीर ॥ पुन सर्व कर्म जु घात के लह मोक्ष सब सुख धाम | प्रभु पास दो मुझ दास की सुन अजं अविचल ठाम || १३ || श्री पार्श्व जिनेश्वर नमित संरेवर पूजे तिन भवपाम- हरम् । स्वर्गादिक जावं नृपपद पावे रामचंद पुन मुक्तिभरम् ||
ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय गर्भ जन्म. तप ज्ञान. निर्वाण पंचकल्याणप्राप्ताय अनपाये महाअ निर्वपामीति स्वाहा ।
इति श्री पाश्वनाथ जिन पूजा संपूणा ||२३||
२४ अथ श्रीवर्द्धमान जिन पूजा ।
रामचन्द्र कृत (अडिल्ल )
ही ।
परकाशक प्रभुजिन
भान
ही ॥
बोध शुद्ध लोक लोक महार और नहिं आन श्रीवर्द्धमान वीर के ग्रह्नाननविधि करु विमल गुण ध्याय ही || १ ||
प्रणमं
पाय
ही ।