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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। प्रभु धीर वीर अत्यंत निरभ असुर को बल खाम । प्रभु पाम दो मुझ दास की सुन अरज अविचल ठाम ।। वाही समय धरणीन्द्र को नय मुकुट कंप्यो पीठ । हरि आय सिंहामन रच्यो फणमंड कीनो ईठ ।। तब असुर करनी भई निषफल अचल जिन जिम धाम । प्रभु पास दो मुझ दाम की सुन अर्ज अविचल ठाम ।।८।। धर ध्यान योग निरोध के चव-घाति कम उपार । लहि ज्ञान कंवलत चराचर लोक सकल निहार ॥ समवादि-भृति कुवेर कानी कहै किम बुधि खाम । प्रभु पास दो मुझ दाम की सुन अजे अविचल ठाम ॥९॥ हरि करी नुति कर जोर विनती धन्य दिन इह वार । धन घड़ाया प्रभु पाम जी हम लहे भव के पार ।। धन धन्य वाणी सुनी में अपनाशनी पुनि धाम । प्रभु पास दो मुझ दाम की सुन अजे अविचल ठाम ॥१०॥ वम कर्म नाश विनाश वषु शिव-नयर पाई धीर । वसु द्रव्यते वह थान पूजे टर मव ही पीर ।। मो अचल है सम्मेद मम भाव है वमु जाम । प्रभु पास दो मुझ दाम की सुन अग्ज अविचल ठाम ॥११॥ कर जोर के चंदगम भाख अहो धन तुम देव । भवि बोध के भव सिंधु तारे तरनतारन टेव ।।