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श्री जन पूजा-पाठ संग्रह।
पद कमल नख युति कनक चपला कोटि रवि छवि धाम । प्रभु पाम दो मुझदाम की मुन अरज अविचल ठाम ।। हूं अधो-मुख पंचाग्नि तपतो कमठ को चर कर । तित अग्नि जरते नाग बोधे देय बच वृष पूर । वे भये हैं धरणीन्द्र पदमा भवनत्रिक-रिधि-धाम । प्रभु पाम दो मुझ दाम की मुन अजे अविचल ठाम ।। इम उग्ग मिग्त निहार के सब अथिर शरण न कोय । संसार यो भ्रम जाल है जिम चपल चपला होय ॥ हूँ एक चेतन मामतो शिव लहुँ तज के धाम । प्रभु पास दो मुझ दाम की मुन अज अविचल ठाम ।। इम चितवतां लोकांतिकेश्वर आय पूजे पांय । परणाम कर संवोध चाले चितवते गुण धाय ॥ धन धन्य वय सुकुमार में तप धरयो अति बल धाम । प्रभु पास दो मुझ दास की सुन अजं अविचल ठाम ।। बंदं समय जिन धरी दीक्षा विहर अह-छित जाय । तित ठये बन में दुष्ट वो मुर कमठ को चर प्राय ।। अति रूप भीषण धार के फुकार पन्नग म्याम । प्रभु पास दो मुझ दाम की सुन अजं अविचल ठाम ।।
वारण सिंह गरज्यो उपल रज बरपाय । कर अग्नि वरषा मेघ मृसल तड़ित परलय वाय ।।