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श्री जन पूजा-पाठ संग्रह।
१५१ दुद्धर तप सुकुमार वय. काशी देश विहाय । पौष कृष्ण एकादशी, धरयो जर्ज गुण गाय ।।
ओ ह्रीं श्री पाश्वनाथ जिनेन्द्राय पोप कृपया एकादशी तप कल्याण___ काय अघ निवपामीति स्वाहा । कृष्ण चौथ शुभ चैत को, हने घाति लह ज्ञान । कह्यो धर्म दुविधा मुदा, जर्ज बोध भगवान् ।। ओ ह्रीं श्री पाश्वनाथ जिनेन्द्राय चत्र कृष्ण चतुर्थी ज्ञान कल्याण
काय अर्घ निर्वपााति म्वाहा। सप्तमि श्रावण शुक्ल ही, शेप कम हन वीर । अविचल शिव थानक लह्यो, जर्ज चग्गा घर धीर ।। ओं ह्रीं श्री पाश्वनाथ जिनेन्द्राय श्रावण शक्ल सप्तमी मोक्ष कल्यागा काय अर्घ निवपामानि म्वाहा ।
अथ जयमाला । ( दोहा ) पाश्वनाथ जिनके नम, चरण कमल युग मार । प्रचुर भवार्णव तुम हंग, मुझ तागं अनतात ॥ श्री पाश्वनाथ जिनन्द्र बंदं शुद्ध मन वच काय । धन पिता अश्व सेन जी धन धन्य वामा माय ॥ धन जन्म काशी देश में वागणमी शुभ ग्राम । प्रभु पाम दो मुझ दाम की सुन अजं अविचल ठाम ।। अति मनोहर मजल जलद समान सुन्दर काय । मुख देख के ललचाय लोचन नेक तपति न थाय ॥