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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह।
सुख-अनंत भंडार, भंडार सुग्घ अविकार अवयव हीन वृद्धि नहीं कहा, त्रिलोक की तिग्काल परिणति ज्ञान गभित है मदा । नित जन्म मग्गा जग न व्याप नाहिं सेवक भूप ही, चिद्रप बसु गुण-मई गज मदा एक मरूप ही ।।७।। तुम गुण मुर-गुरु वन जग मार हो । जिह्वा महम वग्णाय, तोऊ पार ल है नहीं जग मार हो । तो हमप किम थाय । किम थाय हमपं तुहे वनेन देव गुरु में थक रहे, हो कृपानाथ अनाथ के पति इहि भव में में दग्य महे । तुम तरनतारन दुख निवाग्न तार भव ते नाथ जी, चंदगम शरण निहार आयो जोर के युग हाथ जी ।।
दोह।। श्री मुनिसुबित देव की. विनती परम रसाल । जो पढ़सी सुणसी सदा पासी मीन विशाल ॥ ओं ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाजिनंन्द्राय गर्भ. जन्म. नप. ज्ञान. निवागा पंचकल्यागप्रामाय अन पद नाप्रय महाव्य निवपामानि म्वाहा।
इति श्रीमनिमत्रतनाजिन पूजा संप्रगगा।