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________________ श्री जन पूजा-पाठ संग्रह। अनूप श्रावण दूज कार्ग सुग्ग प्राणतत चये, तर मात म्यामा गर्भ आय लोकत्रय में मुग्व भये । सुरासुर के नय मुकुट कंप पीट मत्र हरि आय ही, गर्भा कल्याण महंत महिमा ठानि मंगल गाय ही ॥१॥ पटनव माम त्रिकालही. जग सार हो । वरपे रतन अपार वदी दस वैशाखकी, जग सार हो । जिन जन्मे तिहबार । तिहबार घंटा आदि वाजे मर मिल आयही, जिन लय पांडक वन नहाय क्षीरजल शुभ लायही । सिंगार कर पित मात मापे नृत्य तांडव हरि करयो, लख हृदय हपित भये दंपति नाम मुनिसुव्रत धग्यो ।।२।। श्याम वरण तन तंग है जग मार हो । वीस धनुप परमाण, नीम सहम वर्ष प्राय है, जग मार हो । कछु लांबन शुभ जान । शुभ गज्य पंदगं महम कीनो त्याग तृणवत बन गये, नमः सिद्ध भ्यः कह लोच कानो ध्यान में प्रभु थिर भये । तब ही भयो मन ज्ञान सुर नर पूज पद गुण गाइये, वंशाख दस कृष्ण चंपक वृक्षतल वन भाइये ।।३।। कर पष्ठम मिथिला गये जग मार हो । भोजन हित जिन राय ।
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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