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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह |
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दशमी दि वैशाख ही जन्मे यतत्रय ज्ञान | सकल सुरासुर गिर जजे, मैं जजहुँ घर ध्यान || श्रीं ह्रीं श्रीमुनिनाथजिनेद्राय वैशाखकृष्णदशम्यां जन्मकल्याणकाय अन्य निर्वपामीति स्वाहा | कृष्णदसँ वैशाख तप धरयो परिग्रह त्याग | नगन दिगंबर वन वसे, जजं चरण-युग राग ॥ ओ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय वैशाख कृष्णदशम्यां तपकल्याणकाय अघ निवपामीति स्वाहा । नौमी कृष्ण वैशाख अरि, हने घाति दुखदाय | को धर्म केवल भयो, जजे चरण गुग्ण गाय || श्री ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजनन्द्राय वैशाख कृष्ण नवम्यां ज्ञानकल्याणकाय अर्थ निर्वपामीति स्वाहा।
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फाल्गुण द्वादशि कृष्ण हो, हनि अवाति निर्वाण | गये सुगमुर पढ़ जंजे, जर्ज मोक्ष कल्याण ||
ह्रीं श्रीमुनिसुत्रतनाथजिनेद्राय फाल्गुण कृष्णद्वादश्यां मांकल्याणकाय अर्थ निर्वपामीति स्वाहा ।
अथ जयमाला | दोहा ।
श्री मुनिसुव्रत जिनतने न युगल पद मार । भवदधि तारन-तरन हो, पतित उधारन हार ||
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( ढाल सीमंधर जिनवंदिया की )
मुनिसुव्रत जिन बंदिस्या जग मार हो, नगर कुसागर भृप । पिता नं सुमित्र जी जग सार हो, श्रीहरिवंश अनूप ॥