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________________ श्री जन पूजा-पाठ संग्रह मुनिसुव्रत जिनके पद पूजे दोष दुगुणनव नाशै, लोक कल कर रेख ज्यों देखे ऐसो ज्ञान प्रकाश ॥ ओ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनंद्राय गर्भ, जन्म. तप ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याणक - प्राप्ताय जन्म-मृत्यू- जरारोग-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा | २४० घम मलयागर कुंकुम के मंग कृष्णागर घनसारं, दाह निकंदन परिमल अलि धावत वृद अपार । मुनिसुव्रत जिनके पद पूजे दोष दुगुणनव नाश, लोक कल कररेख ज्यों देखें ऐसो ज्ञान प्रकाश ॥ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय गर्भ जन्म. तप, ज्ञान. निर्वाण पंचकल्याणक प्राप्ताय संसारातापरोगविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा | चंद्रकिरण सम उज्ज्वल दोरघ मन-रंजन अनियारे, तंदुल ओघ अखंडित लेकर पुंज करो गहारे । मुनिसुव्रत जिनके पढ़ पूजे दोष दुगुनव नाश, लोक सकल कर रेख ज्यों देखे ऐसो ज्ञान प्रकाश || श्रीं ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय गर्भ जन्म तप. ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याणक - प्राप्ताय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान निर्वपामीति स्वाहा | कुसुम मनोहर पंच वरन ही सुरतरु के शुभ लावे, गंधसुगंधे प्राणा-पंजन गुंजत पढ़-पड़ आवे । श्राव
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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