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________________ श्री जैन पजा-पाठ संग्रह । १२१ हो दिवि अमरेश्वर, पहमि नरेश्वर, शिव सुन्दर ततदिन वई ॥ प्रा ह्रीं श्रीशान्तिनात्रिनंद्राय गर्भ. जन्म. तप. ज्ञान. निर्वाण पंचकल्याणकप्राप्ताय अनपद प्राप्तय महा निवपााति म्वाहा। इति श्रीशांतिनाजिन पूजा संपण ।।२।। २० अथ श्रीमुनिमुव्रतनाथ जिन पृजा प्रारभ्यते। ( गमचन्द्रकला ) जटिल । मकल पगपह जान ध्यान अमित हने, घाति चतुक दि जान भव्य बोध घने । मुनिसुव्रत जिन पांय नम मिर नाय के, अाह्वानन विधि कम चरण लवलाय के ॥ ओ ह्रीं श्रीमुनिसबननानिनन्द अत्रावनगवनर संवापट आह्वाननम । ग्रा ही श्रीनिमवतनाथजनन्द अत्र निष्ट निष्ट ठ:ट म्थापनम। श्रा ही श्रीमुनिमबनना जनेन्द्र अत्र मम मन्निहिता भव भव वपट मन्निधाकर गाम ।। अथ अष्टक ( ढाल जागागमा का ) इंदशरदऋतु का अंगन मिन मुनिचिनमा अविकाग, शीत मुगंध तृट परमत नाम नार्थीदक भर भागे ।
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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