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श्री जैन प्रजा-पाट मंग्रह।
वरप सहस पच्चीस ही, पोडश कम उपदेश । देय ममेद पधारिये, माम रहे इक शेष ॥ शान्ति कगे जग शान्त जी ॥१८॥ जेट असित चौदस गये, हन अघाति शिव थान । सुर-पति उत्सव अति करयो. मंगल मान कल्याण ॥ शान्ति करो जग शान्त जी ॥१६॥ सेवक अरज करे सुनो, हो करुणानिधि देव । भवदधि दुग्व भयतं मुझे. नार करू तुम सेव ॥ शान्ति कगे जग शान्त जी ॥२०॥ घत्तारन्द-इति जिन गुगामाला, अमर ग्माला.
जो भविजन कंटे घाई ।