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श्री जैन पूजा-पाठ मंग्रह।
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मुनिसुव्रत जिनके पद पूजे दोप दगुगा नव नाशे, लोक सकल कर रेग्ब ज्यों देखे मो ज्ञान प्रकाश ॥ ओ ह्रीं श्रीमुनिमत्रतनाजिनन्द्राय गर्भ जन्म. नप. ज्ञान. निवारण पंचकल्याण कपाताय कामवाणविनाशनाय पुष्पं निवपार्माति म्वाहा। मोदक गृझा घेवर फेणी मुरही घृत्त बनावे, रमनारंजन रमत पूरे कंचन थाल भगवे । मुनिसुव्रत जिनके पद पूजे दोष दुगुणनव नाश, लोक सकल कर रेखज्यों देख ऐमो ज्ञान प्रकाशै ॥ श्रां ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजनन्द्राय गर्भ. जन्म, तप. ज्ञान. निवागा पंचकल्याणक प्राप्राय क्षुधा-गंग विनाशनाय नवां निवपार्माति स्वाहा। दीप रत्नमय ज्योति मनोहर सुवरण पात्तर धार, ध्यांत नम जिम मेघ पवनत रवि प्रातम विस्तारे । मुनिसुव्रत जिनके पद पूजे दीप दुगुणनव नाश, लोक सकल कर रेग्य ज्यों देख पमो ज्ञान प्रकाश ।। ओं ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाजिनन्द्राय गर्भ. जन्म, नप, ज्ञान. निवारण पंचकल्याणकप्रामाय माहांधकाग्गगविनाशनाय दीपं निवपामीति म्वाहा। कृष्णागर मलयागर चंदन धूप दशांग मंगावं, स्वणं धृपायण मंग हुताशन जारे मधुकर आ ।