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________________ १३३ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। ओं ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय ज्येष्ठकृष्णचतुर्दश्यां तपकल्याणकाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।। पौष शुकल दशमी हने, घाति कर्म दुखदाय । केवल लहि वृष भाषियो, जर्जु शांति पद ध्याय ॥४॥ ओं ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेन्द्राय पौषशुक्ल दशम्यां ज्ञानकल्याणकाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। कृष्ण चतुर्दशि जेठ की, हन अघाति शिवथान । गए समेदाचल थकी, जजं मोक्षकल्याण ॥५॥ ओं ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेन्द्राय ज्येष्ठ-कृष्ण-चतुर्दश्यां मोक्षकल्याणकाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । अथ जयमाला । मोरठा। शांति जिनेश्वर पाय, वंदू मनवचकाय ते । देहु सुमति जिनराय, यं विनती रूचिसों करू ॥ (ढाल मंमार मामग्यिो दाहिला) शांति कर्म वसु हानिक, सिद्ध भये शिव जाय । शांत करो सब लोक में, अरज यही सुख - दाय ॥ शांति करो जग शांत जी ॥२॥
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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