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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। ओं ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय ज्येष्ठकृष्णचतुर्दश्यां तपकल्याणकाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।। पौष शुकल दशमी हने, घाति कर्म दुखदाय । केवल लहि वृष भाषियो, जर्जु शांति पद ध्याय ॥४॥ ओं ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेन्द्राय पौषशुक्ल दशम्यां ज्ञानकल्याणकाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। कृष्ण चतुर्दशि जेठ की, हन अघाति शिवथान । गए समेदाचल थकी, जजं मोक्षकल्याण ॥५॥ ओं ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेन्द्राय ज्येष्ठ-कृष्ण-चतुर्दश्यां मोक्षकल्याणकाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ।
अथ जयमाला । मोरठा। शांति जिनेश्वर पाय, वंदू मनवचकाय ते । देहु सुमति जिनराय, यं विनती रूचिसों करू ॥
(ढाल मंमार मामग्यिो दाहिला) शांति कर्म वसु हानिक, सिद्ध भये शिव जाय । शांत करो सब लोक में, अरज यही सुख - दाय ॥ शांति करो जग शांत जी ॥२॥