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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह ओं ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेद्राय गर्भ. जन्म, तप. ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याणकप्राप्ताय मोक्ष-फल-प्राप्तये फलं निवपामीति स्वाहा । (छप्पय) शरद इंदुसम अंबु तीर्थउद्भव तृटहारी । चंदन दाह निकंद शालि शशितें द्युति भारी ॥ सुर-तरुके वर कुसुम सद्य चरु पावन धारे । दीप रत्नमय ज्योति धूपतें मधु झंकार ॥ लह फल उत्तम अर्घ कर शुभ रामचंद कणथाल भर । श्रीशांतिनाथ के चरणयुग वसुविधि अरचे भाव धर ॥ ओं ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय गर्भ, जन्म. तप. ज्ञान. निर्वाण पंचकल्याणकप्राप्ताय अनर्घपदप्राप्तये अर्घ निर्वपार्माति स्वाहा ।
_____ अथ पंचकल्याणक । दोहा । सर्वारथसिधितें चये, भाद्रव सप्तमि स्याम । ऐरादे उर अवतरे, जजं गर्भ अभिराम ॥१॥ ओं ह्रीं श्रीशांतिनाजिनन्द्राय भाद्रपद-कृष्णसप्तम्यां गर्भकल्याण-काय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। जेठ चतुर्दशि कृष्ण ही, जनमे, श्रीभगवान । सनपन कर सुरपति यजे, मैं जजहूँ धर ध्यान ॥२॥ ओं ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय ज्येष्ठ-कृष्ण-चतुर्दश्यां जन्मकल्याणकाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । जेठ असित चउदसि धरयो, तप तज राज महान । सुर नर खगपति पद जजें, मैं जजहूँ भगवान ॥३॥