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________________ श्री जन पूजा-पाठ संग्रह । १३१ रोग मोग अधि व्याधि पूजते नमाय है । अनंत सौख्य सार शांतिनाथ सेय पाय है ॥५॥ ओ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय गर्भ जन्म नप ज्ञान निर्वाण पंचकल्याणकप्राप्ताय क्षुधा-रोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा । · दीप ज्योति की उद्योत भ्रम होत ना कदा | रत्न थाल धार भव्य मोह ध्वांत हैं विदा || रोग सोग आधि व्याधि पूजतें नमाय है । अनंत सौख्य सार शांतिनाथ सेय पाय है ||६|| श्रीं ह्रीं श्रीशा निनाथजिनेन्द्राय गर्भ जन्म नप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याणकपाप्राय मोहांवकार - गंग-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा | ही । जार ही ॥ - अग्रचंदनादि द्रव्यमार सर्व धार सर्ण धूप दानमें हताश संग रोग योग व्याधि व्याधि पूजते नमाय है । अनंत सांख्य सार शांतिनाथ सेय पाय है ||७|| ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ जन्म. तप ज्ञान निर्वाण पंचकल्याणकप्राप्ताय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा । घोटकेन श्री- फलेन हेम थाल को भरे । जिनेश के गुण गाय सर्वन को हरे || रोग मोग आधि व्याधि पूजते नसाय है । अनंत सौख्यसार शांतिनाथ से पाय है ॥८॥
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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