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श्री जन पूजा-पाठ संग्रह।
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१६ अथ श्रीशान्तिनाथ जिन पूजा
( रामचन्द्र कृन ) अडिल्ल । शांति जिनेश्वर नर्म तीर्थ वसु-दुगुण ही । पंचम चक्री अनंग-दुविधषट सुगुण ही ।। तृणवनिधि सब छांड धार तप शिव वरी ।
आह्वानन विधि करू वारत्रय उच्चरी ॥१॥ आं ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्र अत्रावतगवतर मंत्रौपट आह्वाननम । ओ ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम । ओं ह्रीं श्रीशांतिनाजिनेन्द्र अत्र मम सन्निहिता भव भव वषट सन्निधीकरणम ॥
अथ अप्टक । ( नागकछंद)। शलहेम ते पनंत आपगासु व्योम ही । रत्नमुंग धार नीर शीत अंग सोम ही ॥ रोग मोग आधि व्याधि पूजतें नसाय है। अनंत सोख्य मार शांन्तिनाथ सेय पाय है ॥१॥ ओ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनन्द्राय गर्भ. जन्म. नप. ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याणकप्राप्ताय जन्ममृत्युजगगंगविनाशनाय जलं निर्वपार्माति स्वाहा। चंदनादि कंकुमादि गंध सार ल्यावहीं । भृङ्गद गंजते समीर संग ध्यावहीं ॥