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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह |
१२८ ब
तुम्हीं हो विधाता नमें जो जो तुम्हें सो हरौ कर्मके फंद निजानंद दीज दीर्जे नमों
तुम्हीं नंददाता, सदानंद पाता । दुखकंद मेरे, चर्ण तेरे ||५||
लीनौ, कीनो ।
वास
रिषभदेव
स्वामी,
महा मोहको मारि निजराज महाज्ञानको धारि शिव सुनों अर्ज मेरी मुझे वास निजपास दीजे सुधामी || ६॥ दोहा । नाभिराय मरुदेवि सुत, सदा तुम्हारी आस । मनवचकायलगायके, नमें जिनेश्वरदास ॥ १ ॥
श्रीं ह्रीं श्री आदिनायजिनेंद्राय अर्घ निर्व डिल्ल छंद ।
वर्तमान जिनराय भरतके जानिये,
पंचकल्यानक धारि गये शिव थानिये ।
जो नर मनवचकाय प्रभृ पूजे सही,
सो नर दिवसुख पाय लहै अष्टम मही || इत्याशीर्वादः । पुष्पांजलि क्षिपेन ।