________________
१०७
श्री जन पूजा-पाठ संग्रह। कुसुम रत्न सुवर्णमई करों, कनक भाजनमें बहुते भरों । मदनवान महा दुखको हरू, ऋषभदेव चग्न पूजा करू॥ ओं ह्रीं श्रीश्रादिनाथजिनंद्राय पुप्पं निव० सरस मोदन पावक लीजिये, चरु अनेक प्रकार सु कीजिये । असवेद्य क्षुधा दुखको हरू ऋषभदेव चरन पूजा करू ॥ आं ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेंद्राय नवेद्यं निर्व रतन दीप अमोलिक लीजिये, जिन सुयोग्य मनोहर कीजिये। अतुल मोहमहातमको हरू, ऋषभदेव चग्न पूजा करू ॥ आं ह्रीं श्रीआदिनाजिनंद्राय दीपं निव० सरम धूप सुगंध सुहावनी, अगरआदिक द्रव्य सुपावनी । धूप खेय दुखद-विधिको हरू, ऋषभदेव चरन पूजा करू ॥ ओं ह्रीं श्रीश्रादिनाथजिनेद्राय धूपं निर्व, मरस मिष्ट फलावलि लीजिये, चरण जिनवर भेट करीजिये। सहज रूप सुधीरमणी वरूं, ऋपभदेव चरन पूजा करू। ओं ह्रीं श्रीआदिनाजिनंद्राय फलं निव जल फलादिक द्रव्य मिलायक, कनकथाल सुअर्घ बनायके । निज स्वभाव अरी विधिको हरू, ऋषभदेव चरन पूजा करू॥ ओं ह्रीं श्रीआदिनाजिनंद्राय अनय पदप्राप्तय अर्घ निर्व