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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। १२५
समुच्चय जयमाला । दोहा। सम्यकदरशन ज्ञानव्रत, इनबिन मुकति न होय। अंध पंगु अरु आलसी, जुदे जलें दव लोय ॥१॥
___ चौपाई। ताप ध्यान सुथिर बन आवं, ताके करमबंध कट जाये। तासों शिवतिय प्रीति बढ़ावे, जो मम्यकरतनत्रय ध्यावे ।।२।। ताकौं चहुंगति के दुःख नाहीं, मो न पर भवसागर माहीं। जनम जगमृत दोप मिटावे, जो सम्यकपतनत्रय ध्यावे ।।३।। सोई दशलच्छनको साथै, सो सोलह कारण आराधे । सो परमातम पद उपजाव, जो सम्यकरतनत्रय ध्यावे ॥४॥ सोई शक्रचक्रिपद लेई, तीन लोक के सुख विलसेई । सो रागादिक भाव बहावे, जो सम्यकरतनत्रय ध्यावे ।।५।। मोई लोकालोक निहारे, परमानन्द दशा विसतारे । आप तिर औरन तिरवावं, जो मम्यक रतनत्रय ध्यावे ॥६॥
दाहा। एकस्वरूप प्रकाश निज, वचन कह्या नहिं जाय। तीनभेद व्योहार सब, द्यानतको सुखदाय ॥७॥ ओं ह्रीं सम्यरत्नत्रग्याय महाघ निवपामीति स्वाहा।