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१२४ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। धूप घाण सुखकार, रोग विघन जड़ता हरै। सम्यकचारित सार, तेरहविध पूजों सदा ॥७॥ नों ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय धूपं निवपार्माति श्रीफलादि विथार. निश्चय सुरशिवफल करे। सम्यकचारित सार, तेरहविध पूजों सदा ॥८॥ ओं ह्रीं त्रयोदशविधमम्यक्चारित्राय फलं निवपार्माति । जल गन्धाक्षत चारु. दीप धूप फल फूल चक। सम्यकचारित सार, तेरहविध पूजों सदा ॥६॥ श्रओं ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय अब निर्व
जयमाला । दाहा । आप आप थिर नियत नय, तपसंजम व्योहार। स्वपर दया दोनों लिये, तरहविध दुखहार ॥१०॥
चौपाई मिश्रिन गीता छन्द । मम्यकचारित रतन संभालो, पांच पाप तजि के व्रत पालो। पंचसमिति त्रय गुपति गही, नरभव मफल करहु तन ही बीजै मदा तनको जतन यह, एक संयम पालिये । बहु रुल्यो नरक गिनोद मांहीं, कषाय विषयनि टालिये ।। शुभकरम जोग सुघाट आया, पार हो दिन जात है। 'द्यानत' धरमकी नाव बैठो, शिवपुरी कुशलात है ॥१॥ ओं ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय महाघ निर्व०