________________
श्री जन पूजा-पाठ संग्रह। १२३
सोरठा। नीर सुगन्ध अपार, त्रिषा हरे मल छय करे । सम्यकचारित सार, तेरहविध पूजों सदा ॥१॥ ओं ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय जलं निव० जलकेसर घनसार, ताप हरै शीतल करै । सम्यकचारित सार, तेरहविध पूजों सदा ॥२॥ ओं ह्रीं त्रयोदशविधमम्यश्चारित्राय चंदनं० । अछत अनूप निहार, दारिद नास सुख भरै । सम्यकचारित सार, तेरहविध पूजों सदा ॥३॥ ओ ही त्रयोदशविधमम्यक्चारित्राय अक्षतान नि, पुहुप सुवास उदार, खेद हरै मन शुचि करै। सम्यकचारित सार, तेरहविध पूजों सदा ॥४॥ ओं ही त्रयोदशविधमम्यकचारित्राय पुष्पं नि० नेवज विविधप्रकार, क्षुधा हरै थिरता करै । सम्यकचारित सार, तेरहविध पूजों जदा ॥५॥ ओं ह्रीं त्रयोदशविधमम्यकचारित्राय नवद्यं नि । दीपजोति तमहार, घटपट परकाश महा । सम्यकचारित सार, तेरहविध पूजों सदा ॥६॥ ओं ह्रीं त्रयोदशविधसम्यकचारित्राय दीपं निक