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________________ १२२ श्री जेन पूजा-पाठ संग्रह जयमाला । दोहा। आप आप जाने नियत, ग्रन्थपठन व्योहार । मंशय विभ्रम मोह विन अष्टअङ्ग गुनकार ॥१॥ चौपाई मिश्रिन गीता छन्द।। सम्यकजानरतन मन भाया, आगम तीजा नन बताया । अच्छर अरथ शुद्ध पहिचानो, अच्छर अरथ उभय मंगजानी ।। जानी सुकाल पठन जिनागम, नाम गुरु न छिपाइये । तप रीति गहि बहु मान देकं, विनय गुन चित लाइये ।। ए आठ भेद करम-उछेदक ज्ञानदपण देखना । इस ज्ञानहीसों भरत सीझा, और मब पट पेखना ।।१।। आँ ह्रीं अपविधमम्यग्ज्ञानाय पूर्णाव्य निर्वपार्मानि म्वाहा ।। चारित्र पूजा। दाहा। विषयरोग औषधि महा, दवकषाय जलधार । तीर्थंकर जाकों धरै, सम्यकचारितसार ॥१॥ ओ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्र ! अत्र अवतर अवतर संवौपट ओ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्च रित्र ! अत्र तिष्ट तिष्ठ ठः ठः । ओं ह्रीं त्रयोदशविधमम्यक्वारित्र अत्र मम सन्निहितं भव भव वपट ।
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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