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श्री जन पूजा-पाठ संग्रह। १२१ पुहुप सुवास उदार, खेद हरे मन शुचि करें । सम्यकज्ञान, विचार आठभेद पूजों सदा ॥४॥ ओं ह्रीं अष्टविधमम्यग्ज्ञानाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा । नेवज विविध प्रकार, तुधा हरै थिरता करै । सम्यकज्ञान विचार, आठभेद पूजों सदा ॥५॥ ओं ह्रीं अष्टविधग्यम्यग्ज्ञानाय नैवेद्य विन पामीति स्वाहा । दीपज्योति तमहार. घटपट परकाशै महा। सम्यकज्ञान विचार, आठभेद पूजों सदा ॥६॥ ओं ह्रीं अष्टविधमम्यग्ज्ञानाय दीपं निवपााति स्वाहा । धूप घानसुखकार, रोगविघन जड़ता हरै। सम्यकज्ञान विचार, आठभेद पूजों सदा ॥७॥ ओं ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय धूपं निवपार्मानि स्वाहा । श्रीफलादि विथार, निह सुरशिवफल करै । सम्यकज्ञान विचार, आठभेद पूजों सदा ॥८॥ श्रां ह्रीं अप्रविधसम्यग्ज्ञानाय फलं निवपामानि स्वाहा । जल गन्धाचत चारु, दीप धूप फल फूल चरू। सम्यकज्ञान विचार, आठभेद पूजों सदा ॥६॥ ओं ह्रीं अष्टविधमम्यग्ज्ञानाय अध्य निर्वपार्मानि म्वाहा ।