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________________ १२० श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। ओं ह्रीं अष्टांगमहिनपञ्चविंशतिदोषरहिताय सम्यग्दर्शनाय पू. णाध्य निर्वपार्माति स्वाहा। ज्ञान पूजा। ___ दोहा।। पंचभेद जाके प्रकट, ज्ञेय प्रकाशन भान। मोह तपन-हर-चंद्रमा, सोई सम्यकज्ञान ॥१॥ ओहीं अष्टविधमम्यग्ज्ञान अत्र अवतर अवतर संवौपट | ओं ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञान अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ओं ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञान अत्र मम मनिहितं भव भव वपट । सोरठा नीर सुगंध अपार, त्रिषा हरै मल छय करै । सम्यकज्ञान विचार, आठभेद पूजों सदा ॥१॥ ओं ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय जलं निवपामाति स्वाहा । जलकेशर घनसार, ताप हरे शीतल करे । सम्यकज्ञान विचार. आठभेद पूजों सदा ॥२॥ ओं ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय चढ़नं निर्वपामीति स्वाहा । अछत अनूप निहार, दारिद नाशै सुग्व भरै । सम्यकज्ञान विचार, आठभेद पूजों ॥३॥ ओं ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय अक्षतान निर्व पामीति स्वाहा ।
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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