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________________ श्री जन पूजा-पाठ संग्रह। ११६ धूप घानसुखकार, रोग विघन जड़ता हरै। सम्यकदर्शनसार, आट अङ्ग पूजों सदा ॥७॥ श्रा ही अष्टांगमम्यग्दर्शनाय धूपं नि० । श्रीफल आदि विधार, निह सुरशिवफल करें। सम्यकदर्शनसार, आठ अङ्ग पूजों सदा ॥८॥ ओं ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय फलं नि । जल गन्धानत चाम. दीप धूप फल फूल चरु । सम्यकदर्शन सार. आठ अंग पूजों सदा ॥६॥ ओ ही अपांगमम्यग्दर्शनाय अध्य निर्व, ।।।। ___ जयमाला । दाहा। आप आप निहचे लग्वे. तत्वप्रतीति व्योहार । रहित दोष पच्चीस है, सहित अष्टगुन सार॥१॥ ___ चौपाई मिश्रित गीता छन्द । सम्यकदरमन ग्तन गहीजें, जिनवचमें मंदेह न कीजै । इहभव विभव चाह दुखदानी. परभव भोग चहै मत प्रानी ।। प्रानी गिलान न करि अशुचि लखि, धरमगुरु प्रभु परखिये। परदोप ढकिये धरम चिगतेको, सुथिर कर हरखिये ॥ चउसंघसों वान्मल्य काज, घरमकी परभावना । गुण पाठमों गुन अाट लहिक, इहां फेर न आवना ।।२।।
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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