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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह
उत्तम त्याग
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परकार,
दीजिये ।
दान चार धन बिजली उनहार, उत्तम त्याग को जग सारा, औषधि शास्त्र अभय आहारा ।
चार संघ को नरभवलाहो नरभवलाहो लीजिये | ८ ||
संभारे ॥ परिनया |
निचे रागद्वेष निखारै ज्ञाता दोनों दान दोनों संभार क्रूप जऩमम दरब घरमें निज हाथ दीजे साथ लीजे, खाय खोया बह गया || aft साध शास्त्र अभयदिव्या, त्याग राग विरोधको । विन दान श्रावक साध दोनों, लहैं नाहीं बोध को ॥ ही उत्तमत्यागधर्मा गाय श्रयं निर्वपाम ति स्वाहा। उत्तम आकिंचन
परिग्रह चौबिस भेद, त्याग करें मुनिराजजी । तिसुनाभाव उच्छेद, घटती जान जान घटाइये ॥९ उत्तम आकिंचन गुण जानो, परिग्रह चिन्ता दुख ही मानो । फांस तनकसी तनमें साल, चाह लंगोटी की दुख भालं ॥ भाले न समता सुख कभी नर, बिना मुनि-मुद्रा धरें । धनि नगनपर तन नगन ठाडे, सुर असुर पायनि परें । घरमांहि तिसना जो घटावे, रुचि नहीं संसारसौं । बहु धन बुरा हू भला कांहये, लोन पर उपगारसौं || ९ ||