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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। १०६ फल की जाति अपार, घ्राण नयन मनमोहने। भवाताप निवार, दसलक्षण पूजौं सदा ॥८॥ __ओं ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय फलं नि० ॥ ८ ॥ आठों दख संवार, 'द्यानत' अधिक उछाहसों। भवआताप निवार, दसलक्षण पूजौं सदा ॥६॥
श्रां ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षधर्माय अब नि: ॥ ६ ॥
अंग पूजा (मोरठा)।
उत्तम छिमा पीडै दुष्ट अनेक, बांध मार बहु विधि करें । धरिये छिमा विवेक, कोप न कीजै प्रीतमा ॥१॥
चौपाई मिश्रित गीता छन्द। उत्तम हिमा गहो रे भाई, इहभव जम परभव सुखदाई । गाली सुनि मन खेद न आनो, गुनको औगुन कहै अयानो । कहिहै अयानो वस्तु हीन, बांध मार बहुबिधि करै । घरतै निकारे तन विदार, वर जो न तहां धरै ॥ ते करम पूरव किये खोटे, सहै क्यों नहिं जीयरा । अतिक्रोध अगनि बुझाय प्रानी, साम्यजल ले सीयरा ॥१॥
आं ह्रीं उत्तमक्षमाधमांगाय अध्य निवपार्माति स्वाहा ॥१॥