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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह।
उत्तम मार्दव मानमहाविपरूप करहि नीचगति जगतमें । कोमल सुधा अनूप, सुख पार्व प्रानी सदा ॥२॥ उत्तम मादेवगुन मन माना, मान करनको कोन ठिकाना । वस्यो निगोदमाहित आया, दमरी रूकन भाग विकाया । रूकन विकाया भाग वत, देव इकइन्द्री भया। उत्तम मुत्रा चांडाल हुआ, भूप कीड़ों में गया । जीतव्य-जोवन-धन-गुमान, कहा कर जल बुदबुदा ।। करि विनय बहुगुन बड़े जनकी, ज्ञानका पावं उदा ।। आ ही उत्तममादयधर्मागाय अन्य निवपार्माति स्वाहा ।।२।।
उत्तम आर्जव कपट न कीज कोय, चोरनके पुर ना बसे । सरल सुभाषी होय, ताके घर बहु संपदा ॥३॥ उत्तम आर्जवरीति बखानी, रञ्चक दगा बहुत दुखदानी । मनमें होय मो वचन उचरिये, वचन होय सो तनमा करिये।। करिये सरल तिहुंजोग अपने, देख निरमल आरसी । मुख करें जैमा लखे तसा, कपट प्रीति अंगारसी ।। नहिं लहै लछमी अधिक छलकरि, करमबंध विशेषता। भय त्यागि दृध बिलाव पीव, आपदा नहिं देखता ॥३॥
ओं ह्रीं उत्तमाजवधर्मागाय अयं निवपार्माति स्वाहा ।