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१०८ श्री जैन पूजा-पाठ मंग्रह । चन्दन केशर गार, होय सुवास दशों दिशा । भव आताप निवार, दक्षलक्षण पूजौं सदा ॥२॥ ओं ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय चंदनं नि० ॥ २ ॥ अमल अखंडित सार, तंदुल चंद्र समान शुभ। भवआताप निवार, दसलक्षण पूजौं सदा ॥३॥ ओं ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय अक्षतान नि० ॥ ३ ॥ फूल अनेक प्रकार, महके ऊरधलोक लों। भवाताप निवार, दसलक्षण पूजौं सदा ॥४॥ ओं ह्रीं उत्तम क्षमादिदशलक्षणधर्माय पुष्पं नि० ।। ४ ।। नेवज विविध निहार, उत्तम पटरस संजुगत । भवाताप निवार, दसलक्षण पूजौं सदा ॥५॥ ओं ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय नवयं नि: ॥ ५॥ वाति कपूर सुधार, दीपक जोति सुहावनी । भवाताप निवार, दसलक्षण पूजों सदा ॥६॥ प्रां ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय दीपं नि० ॥ ६॥ अगर धूप विस्तार, फैले सर्व सुगन्धता । भवाताप निवार, दसलक्षण पूजौं सदा ॥७॥ श्रां ह्री उत्तमक्षमादिदशलक्षणधमाय धूपं नि० ॥ ७ ॥