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________________ १०७ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। मोरठा। नन्दीश्वर जिनधाम, प्रतिमा महिमा को कहै । 'द्यानत' लीनों नाम, यहै भगति सब मुख करै॥ ओं ह्रीं श्रीनन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदक्षिणपश्चिमोत्तर पूर्णाऽयं निर्व, दशलक्षण धर्म पूजा। अहिल्न उत्तम छिमा मारदव आरजव भाव है, सत्य शौच संजम तप त्याग उपाव है। आकिंचन ब्रह्मचरज धरम दश सार है, चहुंगति दुग्वने काढ़ि मुकति करतार है ॥१॥ ओं ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्म ! अत्रावनगवतम् । मंत्रौपट याही उत्तमनमादिदशलक्षणधर्म : अत्र निष्ट लिष्ट । ठः ठः । श्रां ह्रीं उत्तमनमादिदशलक्षण वम . अत्र मम सन्निहिता भव भव । वपद । मारठा। हेमाचल की धार. मुनिचित सम शीतल सुरभि । भवाताप निवार, दसलक्षण पूजों सदा ॥१॥ ओं ह्रीं उत्तमक्षमा. मार्दव. अाजब. सत्य. शौच. मंयम. नप: त्याग, आकिंचन्य ब्रह्मचयादिदशलनगाधाय जलं नि० ॥१॥
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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