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१०६ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह।
सोल वापीन मधि मोल गिरि दधिमुखं, सहम दश महा जोजन लखत ही सुखं । बावरी कोन दोमांहि दो रतिकर, भौन बावन्न प्रतिमा नमो मुखकरं ।।५।। शेल बत्तीम इक महम जोजन कहे, चार मोल मिले सर्व बावन लहे । एक इक मीमपर एक जिनमंदिरं, भोन बावन्न प्रतिमा नमों सुग्वकरं ॥६॥ वित्र अट एकमा रतनमय मोह ही, देव देवी सरब नयन मन मोहही। पांचौ धनुप तन पद्मासन-परं, भीन बावन्न प्रतिमा नमा सुखकरं ।।७।। लाल नख मुख नयन स्याम अरु स्वेन हैं, स्याम रंग भौंह सिर केश छवि देत हैं। वचन बोलत मनों हंमत कालुपहरं, भोन बावन्न प्रतिमा नमों सुखकरं ॥८॥ कोटिशशि भानुदति तेज छिप जात है, महा वैगग्य परिणाम उहगत है। वयन नहिं कहैं लखि होत मम्यकपरं, भौन बावन्न प्रतिमा नमों सुखकरं ॥९॥